जलती मशाल और तलवारलाएं हैं हमखिड़की से उतर कर आओ तो सहीजलाएं हैं पहलेजलाएंगे फिर सेजलाने की जश्न में लेकर जायेंगे तुम्हे.ज़िन्दगी के पेहलियों सेआज़ाद होने की सुनवाई दी है किसीनेयुक्ति मिल गयी है इसीलिएउद्भ्रांतों के मेले मेंअंधों की जीत मनानेजलने दोइस जिस्म की बाजार मेंआबरुओं का शनाक्त करनेजिस्मों का कब्र ज़रूरी हैउनके ढेर बनने दोकाफिरों की मैदान मेंऔर एक काफिर आया हैविश्वास का रंग ओढ़ेखोकले शौर्य को ललकारनेकम्बख्त सच केबेहलाये-झुठलाए हाथों मेंआज भी ज़िन्दगी जल रही हैऔर थोड़ा किरच ही तो डाला हैउसमें हर्ज ही क्या है?
खैर जलने दो!
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