आज फिर तुम याद आये...
बारिश में बंधी ख्वाहिश
धूल चुकी है अभी
काफिरों की जंगल में
मुहब्बत के पीर ढूंढ लाने की फरमाइश
पूरी नहीं होगी कभी.
आत्माओं का मिलान,
कशिश भरी बातों की गुज़ारिश से
सिमट गयी है
साँसें चल रही है क्योंकि
तुम्हे खुश देखने की ख्वाहिश
कभी डूबेगी नहीं.
©
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